Gau Raksha Dal

Latest New Update

Post Top Ad

Post Top Ad

गोपूजन की परम्परा के पीछे प्राणविज्ञान का रहस्य है ।

May 11, 2017

गोपूजन की परम्परा के पीछे प्राणविज्ञान का रहस्य है ।




गोपूजन की परम्परा के पीछे प्राणविज्ञान का रहस्य है । कहा जाता है कि गाय में तैंतीस करोड देवी-देवता वास करते हैं । सामान्यत: हम देवता का अर्थ ईश्वर के रूपों अथवा अवतारों से लेते हैं किन्तु शास्त्र कुछ और ही बताते हैं । प्रकृति की शक्तियों को देवता कहा जाता है । हमारे अध्यवसायी ॠषियों ने सृष्टि में प्रवाहित जीवनदायी शक्तियों को सम्पूर्णता के साथ जाना । इस शक्ति को ही प्राण कहा जाता है । मूलत: सूर्य से प्राप्त यह महाप्राण सारी सृष्टि में विविधता से प्रवाहित होता है । उसके प्रवाह की गति, दिशा, लय व आवर्तन के भेदों का ॠषियों ने बडी सूक्ष्मता से अध्ययन किया । और इस आधार पर उन्होंने पाया कि ३३ कोट

Read More

गायों की प्रचूरता के कारण ही भारतभूमि यज्ञभूमि बनी है

May 11, 2017

गायों की प्रचूरता के कारण ही भारतभूमि यज्ञभूमि बनी है



गायों की प्रचूरता के कारण ही भारतभूमि यज्ञभूमि बनी है । पर आज हमने गायों को दुर्लक्षित कर दिया है इसी कारण देश के प्राणों पर बन पडी है । गाय के सान्निध्य मात्र से ही मनुष्य प्राणवान बन जाता है । आज हमारे शहरी जीवन से हमने गाय को कोसों दूर कर दिया है । परिणाम स्पष्ट है मानवता त्राही-त्राही कर रही है और दानवता सर्वत्र हावी है ।
तपोभूमि भारत ॠषियों की भूमि है । तपस्या के द्वारा यहाँ ज्ञान व विज्ञान दोनों का ही परमोच्च विकास हुआ । अपने गहन अंतरतम में प्रसुप्त सत्य को प्रकाशित करना ज्ञानयज्ञ है । वहीं सत्य जब जीवन के व्यवहार में उतारा जाता है तब ज्ञान के इस विशेष प्रयोग को विज्ञान कहते हैं । हिन्दू जीवन पद्धति के हर अंग की वैज्ञानिकता का यही रहस्य है । आधुनिक भौतिक विज्ञान की प्रगति के साथ जहाँ अन्य मतों को अपने धर्मग्रंथों को बदलना पड रहा है, वहीं दूसरी ओर जैसे-जैसे अणु से भी सूक्ष्म कणों पर प्रयोग के द्वारा सृष्टि के सुक्ष्मतम रहस्यों की खोज होती जा रही है वैसे-वैसे वेदोक्त हिन्दू सिद्धान्तों की पुष्टि होती जा रही है । बीकानेर के लालेश्वर महादेव मंदिर के महंत संवित सोमगिरीजी महाराज को रक्षा अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने सूचना दी कि आधुनिक भौतिक विज्ञान की खोजें वेदान्त के सिद्धान्तों को साबित कर रही है तो स्वामीजी ने अनायास कहा, ‘‘इसका अर्थ है अब भौतिक विज्ञान सही दिशा में आगे ब‹ढ रहा है । वेद तो सत्य है ही उनके निकट आने से आधुनिक विज्ञान की सत्यता स्पष्ट होती है । यदि हमारे ॠषियों की बातें आज हमें वैज्ञानिक आधार पर स्पष्ट नहीं हो पा रही है तो शंका उनकी सत्यता पर नहीं विज्ञान के अधूरेपन पर करनी होगी ।”

Read More

वेदों में 1331 बार गौमाता का जिक्र है ! 5 कारण आखिर क्यों देश में गोहत्या कभी बंद नहीं हो पायेगी

May 11, 2017

वेदों में 1331 बार गौमाता का जिक्र है ! 5 कारण आखिर क्यों देश में गोहत्या कभी बंद नहीं हो पायेगी




चारों वेदों में गोमाता का सन्दर्भ 1331 बार आया है. ऋग्वेद में 723 बार, यजुर्वेद में 87 बार, सामवेद में 170 बार और अथर्ववेद में 331 बार, गाय का विषय आया है. इन वेद मत्रों में गोमाता की महत्ता, उपयोगिता, वात्सल्य, करूणा और गोरक्षा के उपाय तथा गो से प्राप्त पंचगव्य पदार्थो के उपयोग और लाभ का वर्णन है.वेदों में गाय के लिए गो, धेनु और अघ्न्या ये तीन शब्द आये हैं. वेदों को समझने के लिये छः वेदांग शास्त्रों में से एक निरुक्त शास्त्र है. इसमें वैदिक शब्दों के अर्थो को खोलकर बताया गया है जिसे निर्वचन कहते हैं. ‘हन हिंसायाम् ’ धातु से हनति, हान आदि शब्द बनते हैं जिसका अर्थ हिंसा करना मारना है. गाय को अघ्न्या कहा है अर्थात् जिसकी कभी भी हिंसा न की जाये. शतपथ ब्राह्मण में (7/5/2/34) में कहा गया है-सहस्रो वा एष शतधार उत्स यदगौ: अर्थात भूमि पर टिकी हुई जितनी जीवन संबंधी कल्पनाएं हैं उनमें सबसे अधिक सुंदर, सत्य, सरस, और उपयोगी यह गौ है. इसमें गाय को अघ्न्या बताया गया है. तो अगर छोटे रूप में देखें तो यह वेदों में गाय का महत्व है. सभी ऋषियों ने बोला है कि गाय की हत्या नहीं करनी चाहिए किन्तु आज फिर भी देश में गाय अगर मर रही है तो उसके कुछ कारण हैं. आइये पढ़ते हैं उन्हीं 5 कारणों को जिनके कारण देश में गोहत्या कभी बंद नहीं हो पायेगी- 1.जब तक राजनीति और वोट का मुद्दा गाय रहेगी.. जब तक गाय को लेकर देश में राजनीति होती रहेगी तब तक गाय हत्या पर रोक लगनी देश में असंभव कार्य है. तो ना गोहत्या पर राजनीति कह्तं होगी और ना ही फिर गोहत्या कभी बंद होगी. 2.देश के सभी लोगों में जब तक क्रांति नहीं आएगी.. वैसे गोहत्या बंदी तो मात्र एक ही दिन में बंद हो सकती है जब अगर सभी हिन्दू गाय को माता सिर्फ बोले नहीं बल्कि मानें भी और सड़क पर आ जाए. लेकिन ऐसा होगा नहीं और गौ हत्या खत्म होगी नहीं. 3.लोकसभा में कानून कौन पेश करे.. बड़े शर्म की बात है कि अगर गो-हत्या का कानून बन जाएगा तो इससे किसी को क्या तकलीफ होने वाली है. अगर एक धर्म गाय को माता मानता भी है तो उसमें कौन सा वह पाप कर रहा है. लेकिन लोकसभा में कानून बनाने का जिम्मा कोई भी पार्टी नहीं लेगी. 4.हर हिन्दू का कर्तव्य एक गाय का पालन.. हर हिन्दू को यह जिम्मा उठाना पड़ेगा कि वह एक गाय को गोद लेगा और उसका बेड़ा वह उठायेगा. साथ ही साथ वह व्यक्ति दूध भी इसी गाय का पियेगा तो ऐसा करने से गाय सड़क पर नहीं रहेंगी और वहां से कटने नहीं जाएँगी. लेकिन ऐसा होगा नहीं और गाय हत्या खत्म नहीं होगी. 5.एक गाय करोड़पति बना सकती है.. यह जानकारी सबको देनी होगी कि एक गाय मरने तक अपने सेवक को हर महीने हजारों रुपैय दे सकती है. गाय का मूत्र और मॉल तक लोग खरीद रहे हैं. तो सबको पता होना चाहिए कि गाय करोड़पति बना सकती है. लेकिन इस बात को कौन लोगों तक पहुँचायेगा? तो यह 5 कारण हैं कि हम बोल सकते हैं कि भारत देश में कभी भी गो हत्या खत्म नहीं होगी लेकिन एक दिन हमारे देश से देशी गाय की नस्ल जरूर खत्म हो जायेगी.
Read More

तो यह कारन हे गाय का गोबर और गोमूत्र को पवित्र मानने का !

May 11, 2017

तो यह कारन हे गाय का गोबर और गोमूत्र को पवित्र मानने का !




आपने हवनकुंड और पूजा के स्थान पर गोबर को देखा ही होगा। लोग भगवान की पूजा दोरान गौ माता के गोबर का इस्तेमाल करते हे। गाय के गोबर में भयानक रोग को ठीक करने की क्षमता होती हे। क्या आपको पता हे पुराने ज़माने में लोग गोबर के उपले में भोजन बनाते थे।
गोबर शब्द का प्रयोग गाय, बैल, भैंस या भैंसा के मल के लिये होता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है। इसलिए गाय को पवित्र पशु माना गया है। शास्त्रों के अनुसार गाय के मुख वाले भाग को अशुद्ध और पीछे वाले भाग को शुद्ध माना जाता है।
गाय के गोबर से बने उपले से हवन कुण्ड की अग्नि जलाई जाती है। गांवों में महिलाएं आज भी सुबह उठकर गाय गोबर से घर के मुख्य द्वार को लिपती हैं। इसके पीछे की यह मान्यता है कि इससे घर में लक्ष्मी देवी का वास बना रहता है।
गाय के गोबर में 86 प्रतिशत तक द्रव पाया जाता है। गोबर में खनिजों की भी मात्रा कम नहीं होती। इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन, चूना, पोटाश, मैंगनीज़, लोहा, सिलिकन, ऐल्यूमिनियम, गंधक आदि कुछ अधिक मात्रा में विद्यमान रहते हैं तथा आयोडीन, कोबल्ट, मोलिबडिनम आदि भी थोड़ी थोड़ी मात्रा में रहते हैं।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार गोमूत्र में गांगा मैया का वास है। इसलिए आयुर्वेद में चिकित्सा के लिए गोमूत्र पीने की भी सलाह दी जाती है। श्वास रोग, आंत्रशोथ, पीलिया, मुख रोग, नेत्र रोग, अतिसार, मूत्राघात और कृमिरोग का उपचार गोमूत्र से होता हे। इसके आलावा आधुनिक चिकित्सा विज्ञानी गोमूत्र को हृदय रोग, कैंसर, टीबी, पीलिया, हिस्टिरिया जैसे खतरनाक रोगों में प्रभावकारी मानते हैं।
वैज्ञानिक द्रष्टिकोन से भी गोबर को चर्म रोग एवं गोमूत्र को कई रोगों में फायदेमंद बताया गया है। गोमूत्र का इस्तेमाल आयुर्वेदिक चीजें बनाने में भी होता हे। गाय के अंगों में सभी देवताओं का निवास होता है। गाय की छाया भी बेहद शुभप्रद मानी गयी है। गोमूत्र में मोजूद गुणों के कारण उसे इसे ‘अमृत’ कहा गया है।
गोबर को जलाने से उसमे जो धुआ निकलता हे उससे सकारात्मक ऊर्जा फेलती है। सिर्फ इतना ही नहीं यह हमारे आसपास के वातावरण का भी शुध्ध और पवित्र रखता हे। उन्हीं कारणों की वजह से इसे पवित्र माना गया हे।
नवग्रहों सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, केतु के साथ साथ वरूण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है। जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है।

Read More

गौमाता के दैनिक जाप, प्रार्थना तथा प्रणाम के मन्त्र

May 11, 2017

गौमाता के दैनिक जाप, प्रार्थना तथा प्रणाम के मन्त्र


महाभारत में गौमाता का माहात्म्य, तथा गौमाता के दैनिक  जाप, प्रार्थना  तथा प्रणाम के मन्त्र -

भगवान् श्री राम के गुरुदेव महर्षि वसिष्ठ जी इक्ष्वाकुवंशी महाराजा सौदास से “गवोपनिषद्” (गौओं की महिमा के गूढ रहस्य को प्रकट करने वाली विद्या) का निरूपण करते हुए महाभारत में कहते हैं –

हे राजन्! मनुष्य को चाहिये कि सदा सबेरे और सायंकाल आचमन करके इस प्रकार जप करे – “घी और दूध देने वाली, घी की उत्पत्ति का स्थान, घी को प्रकट करने वाली, घी की नदी तथा घी की भंवर रूप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें। गौ का घी मेरे हृदय में सदा स्थित रहे। घी मेरी नाभि में प्रतिष्ठित हो। घी मेरे सम्पूर्ण अंगों में व्याप्त रहे और घी मेरे मन में स्थित हो। गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे भी रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूं”। इस प्रकार प्रतिदिन जप करने वाला मनुष्य दिन भर में जो पाप करता है, उससे छुटकारा पा जाता है। 

गौ सबसे अधिक पवित्र, जगत् का आधार और देवताओं की माता है। उसकी महिमा अप्रमेय है। उसका सादर स्पर्श करे और उसे दाहिने रख कर ही चले। प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी चाहिये कि सुन्दर एवं अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें। संसार में गौ से बढ़ कर दूसरा कोई उत्कृष्ट प्राणी नहीं है। त्वचा, रोम, सींग, पूंछ के बाल, दूध और मेदा आदि के साथ मिल कर गौ दूध दही घी आदि के द्वारा सभी यज्ञों व पूजाओं का निर्वाह करती है, अतः उससे श्रेष्ठ दूसरी कौन-सी वस्तु है। 

अन्त में वे गौमाता को परमात्मा का स्वरूप मान कर प्रणाम करते हैं - जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय ८० श्लोक १,२,३,४,१०,१३,१४,१५

१. उपर्युक्त “गवोपनिषद्” में से दैनिक जप के संस्कृत मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) -

घृतक्षीरप्रदा गावो घृतयोन्यो घृतोद्भवाः।
घृतनद्यो घृतावर्तास्ता मे सन्तु सदा गृहे॥
घृतं मे हृदये नित्यं घृतं नाभ्यां प्रतिष्ठितम्।
घृतं सर्वेषु गात्रेषु घृतं मे मनसि स्थितम्॥
गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च।
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाम्यहम्॥


अनुवाद = घी और दूध देने वाली, घी की उत्पत्ति का स्थान, घी को प्रकट करने वाली, घी की नदी तथा घी की भंवर रूप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें। गौ का घी मेरे हृदय में सदा स्थित रहे। घी मेरी नाभि में प्रतिष्ठित हो। घी मेरे सम्पूर्ण अंगों में व्याप्त रहे और घी मेरे मन में स्थित हो। गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे भी रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूं

२. गौमाता की दैनिक प्रार्थना का मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) -

सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः।
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं प्रकीर्तयेत्॥


अनुवाद = प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी चाहिये कि सुन्दर एवं अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें

३. गोमाता को परमात्मा का साक्षात् विग्रह जान कर उनको प्रणाम करने का मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) -

यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥


अनुवाद = जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
 जय गौमाता की
Read More

गाय की पूरी शारीरिक संरचना विज्ञान पर आधारित है, जानें कैसे ??

May 11, 2017

गाय की पूरी शारीरिक संरचना विज्ञान पर आधारित है ; जानें कैसे ??



हम बीमार क्यों होते हैं इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि हमारा शरीर पंचभूतों से निर्मित है। मानव के अतिरिक्त मानव उपयोगी समस्त जीवों का भी शरीर भी पंचभूतों से ही निर्मित है । वर्तमान चिकित्सा पद्धतियाँ आज के समय रासायनिक तरीकों से चिकित्सा करती हैं , उन्हें पंचभूत को संतुलित करने का कोई ज्ञान नहीं है । आज के समय मानव निर्मित सारे पंचभूत चाहे वह मिट्टी हो , जल हो , वायु हो , अग्नि हो या आकाश हो सब कुछ दूषित हो चुका है ।
हमारे महान ऋषि-मुनियों की प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियों में पंचभूतो को ध्यान में रखकर चिकित्सा की जाती थी । हमें हमारे वातावरण के अनुरूप आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का ज्ञान हमारे ऋषि-मुनियों से मिला जो मानव की नाड़ी देखकर यह ज्ञात कर लेते थे कि हमारे शरीर का कौन सा पंचभूत असंतुलित है और उसके अनुरूप ही वो चिकित्सा करते थे ।
विश्व में यदि कहीं भी चिकित्सा का ज्ञान सर्वप्रथम उद्भव हुआ तो वह हमारा देश आर्याव्रत भारत वर्ष ही है । सर्वप्रथम पूरे विश्व को ज्ञान हमारे महान ऋषि-मुनियों ने दिया चाहे वह अध्यात्मिक क्षेत्र हो या आयुर्वेदिक  का क्षेत्र हो ।  यदि  किसी भी व्यक्ति ज्ञान ना हो तो वह व्यक्ति उस ज्ञान को जानने का प्रयास करता है लेकिन यहाँ उल्टा हुआ। अनेक विदेशी लुटेरों ने हमारे ज्ञान को लूटा और हमारे अस्तित्व को मिटाने के लिए उसमे आग लगा दी । वर्षों तक हमारे ज्ञानपीठ गुरुकुल तक्षशिला की पुस्तके आग में धू-धू करके जलती रही , इतना ही नहीं बचा खुचा ज्ञान भी हमारी संस्कृति को भी नष्ट करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है ।
अब प्रश्न यह उठता है जिस धरती को हम अपनी माँ मानते हैं उस धरती पर प्रतिदिन लाखों लीटर रासायनिक जहर डाला जा रहा है ..? ऐसा क्यों…?  विदेशों से प्रतिवर्ष अरबों टन कचरे को लाकर हमारी धरती पर को मरुस्थल बनाया जा रहा है । क्या हमारी यही संस्कृति है कि हम अपनी माँ को जहर दें , उसे कूड़ाघर बनाकर दूषित कर दें। हमारे देव तत्व जल , अग्नि , वायु और आकाश सब कुछ दूषित हो चुके हैं ।
पूरी नदियों में उद्योंगो  के कचरे को डालकर गंदे नाले के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है । वायु में असंख्य कीटनाशक रसायन , रेडियोएक्टिव पदार्थ डालकर वायु को दूषित किया जा रहा है । रेडियोएक्टिव तरंगो द्वारा आकाश तत्व को दूषित किया जा रहा है । हमारे शास्त्रों में लिखा है अनावश्यक रूप से अग्नि का प्रयोग ना करें , लेकिन चाहे हमें बीडी -सिगरेट जलाना हो या बड़े-बड़े उद्योग कारखाने चलाने हो , आवश्यकता हो या ना हो हमेशा अग्नि को जलाया जाता है ।
इन सब तमाम बातों का हमारे स्वास्थ्य और चिकित्सा से गहरा सम्बन्ध है , हमारी संस्कृति और सभ्यता में जहाँ प्रकृति के संतुलन की बात कही गयी है वहीँ आज बिना कारण के भी दुरुपयोग करके पंचभूतों को दूषित किया जा रहा है । आज इस दूषित पंचभूत को ठीक करना मानव के बस की बात नहीं है फिर कौन करेगा इसे सही…?
यह जिम्मेदारी हमसे अधिक सरकार की है लेकिन सरकार तो अंग्रेजी उपभोगों की आदी है उसको हमारे स्वास्थ्य से कुछ मतलब नहीं …
यदि हमें स्वस्थ्य रहना है तो इस ओर हमें ही ध्यान देना होगा । इस सृष्टि में पंचभूतों को शुद्ध करने का एक ही विकल्प है वह है गौ-माता , लेकिन सरकार ने गौ को भी बचाने का कोई प्रयास नहीं किया है इसको बचाने का कार्य हमें करना होगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब मानव का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा ।
मानव को विमारियों से बचने के लिए 21% आक्सीजन की जरुरत है । यदि शरीर में आक्सीजन की कमी हो जाती है तो कैंसर होता है । आजकल शहरों में बढ़ते प्रदूषण के कारण 14 -15 % से अधिक आक्सीजन नहीं मिलता है जिसके कारण शरीर को ना तो पूरा आक्सीजन मिलता है और ना ही शुद्ध रक्त । शरीर की कोशिकाएं तीव्रता से मरती हैं , जिनको पुनर्जीवित करना असंभव है ।
गाय की पूरी शारीरिक संरचना विज्ञान पर आधारित है । गाय से उत्सर्जित एक-एक पदार्थ में ब्रह्म उर्जा , विष्णु उर्जा और शिव उर्जा भरी हुई है । गाय को आप कितने ही प्रदूषित वातावरण में रख दीजिये या कितना ही प्रदूषित जल या भोजन करा दीजिये गाय उस जहर रूपी प्रदूषण को दूध , दही , गोबर , गौ-मूत्र , या साँस के रूप में कभी बाहर नहीं उत्सर्जित करती है बल्कि गाय उसे अपने शरीर में ही धारण कर लेती है । आपको जो भी देगी विशुद्ध देगी ।
गाय का गोबर : – गाय के गोबर में 23 % आक्सीजन की मात्रा होती है । गाय के गोबर से बनी भस्म में 45 % आक्सीजन की मात्रा मिलती है । गाय के गोबर में मिट्टी तत्व है यदि आपको परिक्षण के लिए शुद्ध मिट्टी चाहिए तो गाय के गोबर से शुद्ध मिट्टी तत्व का उदहारण आपको कही नहीं मिलेगा । आक्सीजन भी भरपूर है यानि गोबर से ही वायु तत्व की पूर्ति हो रही है ।
* यह ध्यान रखें कि गाय के गोबर की भस्म बनाने का एक तरीका है , तभी आपको परिष्कृत शुद्ध आक्सीजन तथा पूर्ण तत्व मिल पायेगा । गाय के गोबर की भस्म मकर संक्रांति के बाद बनायीं जाती है ।
गाय का दूध :- गाय के दूध में अग्नि तत्व है । तथा इस दूध के भीतर 85 % जल तत्व है ।
गाय की दही : – गाय की दही में 60 % जल तत्व है । गाय की छाछ गाय के दूध से 400 गुना ज्यादा लाभकारी है । इसलिए गाय के छाछ को अमृत कहा जाता है । इसमें इतने अधिक पोषक तत्व होते हैं कि आप सोच भी नहीं सकते है ।
छाछ बनाने की अलग-अलग विधियाँ है। छाछ को किस जलवायु में कितनी मात्रा में पानी मिलाकर बनाना है इसका अलग-अलग तरीका है । तभी यह पूरा लाभ प्रदान करती है ।
गाय का मक्खन : – गाय के मक्खन में 40% जल तत्व है । मक्खन अद्भुत है इसके अन्दर भरपूर ब्रह्म उर्जा होती है । ब्रह्म उर्जा के बिना मानव के अन्दर सत्वगुण नहीं आते हैं । विना सत्वगुण के सवेदनशीलता शून्य हो जाती है । मान लीजिये किसी ने गुंडेगर्दी से आपके गाल पर थप्पड़ मार दिया तो आपके अन्दर यदि संवेदनशीलता नहीं है तो आप वर्दास्त कर लेंगे अन्यथा आप उस थप्पड़ का जरुर जबाब देंगे ।
आज बाजार में बटरआयल चल रहा यानि दूध से निकाली गयी क्रीम का आयल जो आपके भीतर संवेदनशीलता ख़त्म कर रहा है । भगवान् श्री कृष्ण ने मक्खन के कारण ही इतनी आसुरी शक्तियों का नाश किया ।
(यह लेख गौ-वैज्ञानिक निरंजन वर्मा जी द्वारा तैयार किया गया है l दिनांक 21 22 नवंबर 2015 को गुडगांव में दो दिवसीय स्वदेशी शिविर का आयोजन किया गया इस शिविर में निरंजन जी ने गाय से सम्बंधित अनेक वैज्ञानिक तथ्य प्रस्तुत किये । )
गौमाता से जुडी अन्य जानकारियों हेतु विजिट करते रहे 


Read More

करोड़पति बनना है तो गाय पालन करें ..

May 11, 2017

करोड़पति बनना है तो गाय पालन करें ..



गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्‍या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है। गाय पालन ,दूध उत्पादन व्यवसाय या डेयरी फार्मिंग छोटे व बड़े स्तर दोनों पर सबसे ज्यादा विस्तार में फैला हुआ व्यवसाय है। गाय पालन व्यवसाय, व्यवसायिक या छोटे स्तर पर दूध उत्पादन किसानों की कुल दूध उत्पादन में मदद करता है और उनकी आर्थिक वृद्धि को बढ़ाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि, भारत में कई वर्षों से गाय पालन कर डेयरी फार्मरों ने दूध उत्पादन से आर्थिक वृद्धि में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गाय पालन कर दूध उत्पादन ने हमारे देश की अर्थव्यवस्था में बड़े स्तर पर भागीदारी की है और बहुत से गरीब किसानों को गाय पालन कर अपना व्यवसाय स्थापित करने में सहयोग किया है। यदि किसी के पास दूध उत्पादन का व्यवसाय स्थापित करने के लिए प्रारंभिक पूँजी है तो, दूध उत्पादन व्यवसाय को किसी भी क्षेत्रों में आसानी से स्थापित किया जा सकता है।
गाय पालन की तैयारी 
गाय की नस्ल का चुनाव – जब कभी भी आप गाय पालन  का व्यवसाय करने को सोंचे तो आपके लिए ये जानना बहुत जरुरी है की कौन सी नस्ल की गाय सबसे ज्यादा दूध देती है। किस नस्ल की गाय का बछड़ा दूध का उत्पादन करने के जल्दी बढ़ता है या फिर पुरुष बछड़ों को आप कितना बेच सकते है इन सभी बातों का अच्छे से पता कर लेना चाहिए । गाय को अपने शहर के जलवायु के अनुसार हीं खरीदना चाहिए ताकि वे आपके शहर की जलवायु को बर्दास्त कर सके इसलिए बेहतर होगा की गाय आप अपने शहर से हीं ख़रीदे। आपके लिए ये जानना भी बेहत जरुरी है की किस नस्ल के दूध के लिए स्थानीय मांग ज्यादा है । निचे हम आपको बताएँगे की कौन सी नस्ल की गाय ज्यादा दूध उत्पादन करती है :-
मालवी :ये गायें दुधारू नहीं होतीं। इनका रंग खाकी होता है तथा गर्दन कुछ काली होती है। अवस्था बढ़ने पर रंग सफेद हो जाता है। ये ग्वालियर के आस-पास पाई जाती हैं।
नागौरी :इनका प्राप्तिस्थान जोधपुर के आस-पास का प्रदेश है। ये गायें भी विशेष दुधारू नहीं होतीं, किंतु ब्याने के बाद बहुत दिनों तक थोड़ा-थोड़ा दूध देती रहती हैं।
थरपारकर :ये गायें दुधारू होती हैं। इनका रंग खाकी, भूरा, या सफेद होता है। कच्छ, जैसलमेर, जोधपुर और सिंध का दक्षिणपश्चिमी रेगिस्तान इनका प्राप्तिस्थान है। इनकी खुराक कम होती है।
पवाँर: पीलीभीत, पूरनपुर तहसील और खीरी इनका स्थान है। इनका मुँह सँकरा और सींग सीधी तथा लंबी होती है। सींगों की लबाई १२-१८ इंच होती है। इनकी पूँछ लंबी होती है। ये स्वभाव से क्रोधी होती है और दूध कम देती हैं।
भगनाड़ी : नाड़ी नदी का तटवर्ती प्रदेश इनका स्थान है। ज्वार इनका प्रिय भोजन है। नाड़ी घास और उसकी रोटी बनाकर भी इन्हें खिलाई जाती है। ये गायें दूध खूब देती हैं।
दज्जल :पंजाब के डेरागाजीखाँ जिले में पाई जाती हैं। ये दूध कम देती हैं।
गावलाव :दूध साधारण मात्रा में देती है। प्राप्तिस्थान सतपुड़ा की तराई, वर्धा, छिंदवाड़ा, नागपुर, सिवनी तथा बहियर है। इनका रंग सफेद और कद मझोला होता है। ये कान उठाकर चलती हैं।
हरियाना :ये 8-12 लीटर दूध प्रतिदिन देती हैं। गायों का रंग सफेद, मोतिया या हल्का भूरा होता हैं। ये ऊँचे कद और गठीले बदन की होती हैं तथा सिर उठाकर चलती हैं। इनका स्थान रोहतक, हिसार, सिरसा, करनाल, गुडगाँव और जिंद है।
करन फ्राइ :   करण फ्राइ का विकास राजस्थान में पाई जाने वाली थारपारकर नस्ल की गाय को होल्स्टीन फ्रीज़ियन नस्ल के सांड के द्वारा किया गया।  थारपारकर गाय की दुग्ध उत्पाद औसत होता है. गर्म और आर्द्र जलवायु को सहन करने की क्षमता के कारण वे महत्वपूर्ण होती हैं।
अन्य राठ अलवर की गाएँ हैं। खाती कम और दूध खूब देती हैं।
गीर- ये प्रतिदिन 50-80 लीटर दूध देती हैं। इनका मूलस्थान काठियावाड़ का गीर जंगल है।
देवनी - दक्षिण आंध्र प्रदेश और हिंसोल में पाई जाती हैं। ये दूध खूब देती है।
नीमाड़ी - नर्मदा नदी की घाटी इनका प्राप्तिस्थान है। ये गाएँ दुधारू होती हैं।सायवाल जाति :सायवाल गायों में अफगानिस्तानी तथा गीर जाति का रक्त पाया जाता है। इन गायों का सिर चौड़ा, सींग छोटी और मोटी, तथा माथा मझोला होता है। ये पंजाब में मांटगुमरी जिला और रावी नदी के आसपास के स्थानों में पाई जाती है। ये भारत में कहीं भी रह सकती हैं। एक बार ब्याने पर ये 10 महीने तक दूध देती रहती हैं। दूध का परिमाण प्रति दिन 10-16 लीटर होता है। इनके दूध में मक्खन का अंश पर्याप्त होता है।
सिंधी : इनका मुख्य स्थान सिंध का कोहिस्तान क्षेत्र है। बिलोचिस्तान का केलसबेला इलाका भी इनके लिए प्रसिद्ध है। इन गायों का वर्ण बादामी या गेहुँआ, शरीर लंबा और चमड़ा मोटा होता है। ये दूसरी जलवायु में भी रह सकती हैं तथा इनमें रोगों से लड़ने की अद्भुत शक्ति होती है। संतानोत्पत्ति के बाद ये 300 दिन के भीतर कम से कम 2000 लीटर दूध देती हैं।
काँकरेज :कच्छ की छोटी खाड़ी से दक्षिण-पूर्व का भूभाग, अर्थात् सिंध के दक्षिण-पश्चिम से अहमदाबाद और रधनपुरा तक का प्रदेश, काँकरेज गायों का मूलस्थान है। वैसे ये काठियावाड़, बड़ोदा और सूरत में भी मिलती हैं। ये सर्वांगी जाति की गाए हैं और इनकी माँग विदेशों में भी है। इनका रंग रुपहला भूरा, लोहिया भूरा या काला होता है। टाँगों में काले चिह्न तथा खुरों के ऊपरी भाग काले होते हैं। ये सिर उठाकर लंबे और सम कदम रखती हैं। चलते समय टाँगों को छोड़कर शेष शरीर निष्क्रिय प्रतीत होता है जिससे इनकी चाल अटपटी मालूम पड़ती है।
गाय रखने की जगह 
जब भी आप गाय पालन व्यवसाय का सोच रहे हों तो सबसे पहले आपको गाय को रखने के लिए जगह की अव्यश्कता होगी। गाय को रखने के लिए ऐसे जगह का चयन करना चाहिए जो main market से ज्यादा दूर ना हो और उस जगह पर transport की सुविधा भी अच्छी हो। भले हीं आप व्यवसाय 2-3 गाय से शुरु कर रहे हों लेकिन जगह का चुनाव इतना बड़ा जरुर से करे जिससे आप future में और भी गाय को वहां रख सकें । गाय रखने वाली जगह पर कुछ और चीजो की जरूरत होती है जैसे की :-
    उस जगह पर गाय के रहने के लिए केवल ऊपर से shade किया हुआ छोटा छोटा घर बना दें जो की चारो ओर से हवादार हो ।
    जमीन चिकनी और हलकी ढलाव वाली होनी चाहिए ताकि जब गाय पेशाब (toilet) करे तो वो जमने के वजय आसानी से बह जाए ।
    चिकनी जमीं पर गाय की गोबर को उठाने में भी आसानी होती है ।
    क. प्रजनन
    (अ) अपनी आय को अधिक दूध वाले सांड के बीज से फलावें ताकि आने वाली संतान अपनी माँ से अधिक दूध देने वाली हो| एक गाय सामान्यत: अपनी जिन्दगी में 8 से 10 बयात दूध देती हैं आने वाले दस वर्षों तक उस गाय से अधिक दूध प्राप्त होता रहेगा अन्यथा आपकी इस लापरवाही से बढ़े हुए दूध से तो आप वंचित रहेंगे ही बल्कि आने वाली पीढ़ी भी कम दूध उत्पादन वाली होगी| अत: दुधारू गायों के बछड़ों को ही सांड बनाएँ|
    (आ) गाय के बच्चा देने से 60 से 90 दिन में गाय पुन: गर्भित हो जाना चाहिए| इससे गाय से अधिक दूध, एवं आधिक बच्चे मिलते हैं तथा सूखे दिन भी कम होते है|
    (इ) गाय के फलने के 60 से 90 दिन बाद किसी जानकार पशु चिकित्सा से गर्भ परिक्षण करवा लेना चाहिए| इससे वर्ष भर का दूध उत्पादन कार्यक्रम तय करने में सुविधा होती है|
    (ई) गर्भावस्था के अंतिम दो माह में दूध नहीं दूहना चाहिए तथा गाय को विशेष आहार देना चाहिए| इससे गाय को बच्चा जनते वक्त आसानी होती है तथा अगले बयात में गाय पूर्ण क्षमता से दूध देती है|
    ख. आहार
    (अ) दूध उत्पादन बढ़ाने तथा उसकी उत्पादन लागत कम करने के लिए गाय की सन्तुलित आहार देना चाहिए| संतुलित आहार में गाय की आवश्यकता के अनुसार समस्त पोषक तत्व होते हैं, वह सुस्वाद, आसानी से पचने वाला तथा सस्ता होता है|
    (आ) दूध उत्पादन से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए, पशु को बारह मास पेट भर हरा चारा खिलाएं| इससे दाने का खर्च भी घटेगा तथा गाय का नियमित प्रजनन भी होगा|
    (इ) गाय को आवश्यक खनिज लवण नियमित देंवे|
    (ई) गाय को आवश्यक चारा- दाना- पानी नियत समय के अनुसार देवे| समय के हेर-फेर से भी उत्पादन प्रभावित होता है|
    ग. रोग नियंत्रण
    (अ) संक्रामक रोगों से बचने के लिए नियमित टिके लगवाएं|
    (आ) बाह्य परिजीवियों पर नियंत्रण रखे| संकर पशुओं में तो यह अत्यंत आवश्यक है|
    (इ) आन्तरिक परजीवियों पर नियंत्रण रखने के लिए हर मौसम परिवर्तन पर आन्तरिक परजिविनाशक दवाएँ दें|
    (ई) संकर गौ पशु, यदि चारा कम खा रहा है या उसने कम दूध दिया तो उस पर ध्यान देवें| संकर गाय देशी गाय की आदतों के विपरीत बीमारी में भी चारा खाती तथा जुगाली भी करती है|
    (उ) थनैला रोग पर नियंत्रण रखने के लिए पशु कोठा साफ और हवादार होना चाहिए| उसमें कीचड़, गंदगी न हो तथा बदबू नहीं आना चाहिए| पशु के बैठने का स्थान समतल होना चाहिए तथा वहाँ गड्ढे, पत्थर आदि नुकीले पदार्थ नहीं होना चाहिए| थनैला रोग की चिकित्सा में लापरवाही नहीं बरतें|
कितने गाय से गाय पालन व्यवसाय  करना चाहिए
जब आप d गाय पालन व्यवसाय अकेले करने जा रहे है तो शुरुआत  में आप 2 से 3 गाय से हीं व्यवसाय शुरु करे उसके बाद धीरे धीरे आप गाय की संख्या को बढ़ा सकते है । जब आपकी गाय की संख्या बढ़ जाये तो आपको हर 10 गाय के देखरेख के पीछे 1 worker की अव्यश्कता पड़ेगी ।
पूंजी 
अगर आप 2-3 गाय से हीं अपने व्यवसाय को शुरु करते है तो आपको बहुत हीं कम पूंजी लगाना होगा लकिन वहीँ अगर आप 10 या उससे भी ज्यादा गाय से अपना व्यवसाय करते है तो आपको बहुत पैसे की अव्यश्कता पड़ेगी । अगर आपको ज्यादा गाय से  व्यवसाय  करना है तो आप बैंक से ऋण ले सकते है 
गाय का दाम कैसे जाने
गाय का दाम जोड़ने का सबसे अच्छा तरीका उसकी दूध उत्पादन छमता पर निर्भर करता है | उदाहरण  – अगर 1 गाय  एक दिन में 1 लीटर दूध देती है तो उसका दाम Rs 3,500 से ले कर 4,500 तक होगा |
कीमत  = Rs 35,000 to 45,000
प्रतिदिन ढूध  प्रति गाय = 10 Liter
कुल उत्पादन का मूल्य  = Rs 52,000 to 68,000
प्रतिदिन ढूध  प्रति गाय = 20 Liter
Price = Rs 70,000 to 90,000

जल प्रबंधन 
जिस जगह पर आप गाय को रख रहे हों ध्यान रहे की उस जगह पर जल का प्रबंध अच्छा होना चाहिए । गायों को नहाने के लिए या फिर उनके जगह की साफ़ सफाई के लिए पानी की बहुत खपत होती है ।

नित्य पशु का दूध निकाले – दूध उत्पादक जानवर आमतौर पर एक दिन में दो या तीन बार दूध देते है। इसलिए आपको चाहिए की आप नित्य हीं उनका दूध निकाले । दूध निकालने का सही समय होता है :-
सुबह 5 से 7 बजे – सुबह में 5 बजे से 7 बजे के बिच का समय गाय का दूध दुहना सही रहता है । इस समय में गाय अच्छे quantity में दूध देती है ।
शाम 4 से 6 बजे – सुबह के बाद शाम के time में गाय का दूध निकलने से ज्यादा दूध की प्राप्ति होती है । इस तरह से आप एक दिन में 2 बार कर के ज्यादा से ज्यादा quantity में दूध की प्राप्ति कर सकते है ।
दूध कैसे निकालें – गाय को हर वक्त बांध कर नहीं रखना चाहिए उन्हें समय समय पर खुली हवा में घांस चढ़ने के लिए छोड़ देना चाहिए इससे गाय स्वस्थ रहती है और दूध भी ज्यादा देती है । गाय के दूध को दुहने का भी एक तरीका होता है । चलिए हम जानते है कैसे गाय का दूध निकला जाता है :-
जब कभी भी गाय का दूध दुहना हो तो उन्हें shade में ले आयें जहां उनके पुआल खाने का इन्तेजाम किया हुआ हो ।
जब गाय पुआल खाने में व्यस्त हो जाती है तो उसी वक्त उसका दूध दुह लेना चाहिए ।
दूध दुहने वक्त अपने हाँथो में हल्का सरसों तेल लगा लें इससे हांथो पर ज्यादा जोड़ नहीं पड़ता है और दूध भी आसानी से निकल जाता है ।
जो लोग इस काम में expert होते है वो लोग इस तरह से एक बार में कई गायों का दूध दुह लेते है।
जब तक आप एक गाय को दुह रहें हो तब तक के लिए बांकी की गायों को घांस चढ़ने के लिए छोड़ दें ।


Read More

Post Top Ad